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Showing posts from August, 2011

अक्स

हर  तूफ़ान  के  बाद  बिखरी हुई सी शक्ल को सवाँर कर फिर सामने मेरे ऐसे ही दिखते हो  मुझे मेरी शक्ल से रु बरु कराते हो   --  कानू --

क्यों

नासूर की तरह मुझसे  जुड़ा  हुआ ये कल  आखिर चाहता क्या है  क्यों जुड़ते हैं ऐसे कल ज़िन्दगी में  क्यों दिया जाता है ये हक़ किसी को की मेरे ही आज और कल पर मेरे ही जज्बातों की स्याही बिखेर दी जाये और मेरी ही ज़िन्दगी के पन्नों पे मैं ढूंढता फिरू वो जो जो मैंने लिखना चाह था पर कभी कलम किसी और के हाथ में थी तो कभी किसी और की किताब भर रहा था मैं --  कानू --

बूंदें

कभी इक गरज के साथ बरसती हैं तो कभी ख़ामोशी से एक मुस्कुराती धूप में बह जाती हैं कभी तूफ़ान बनकर बहा ले जाती हैं सब तो कभी इक सहमी सी नदी की तरह बस राह बनाती हुई चलती जाती हैं बूंदें – चाहे अश्क हो या बरसात दिल को छूकर कुछ असर हर बार कर जाती हैं --  कानू --