जाने किस नशे में गुम होकर खुद ही से दूर हो गया मैं ज़िन्दगी के उलझे पन्नों में दिल की कलम को कहीं भूल गया मैं रौशनी थी खूब मेरे आस पास आँखें ही न खुल पायीं मेरी सोया था मैं खुश था कितना यूँ जागते ही ज़िन्दगी से मुलाकात हो गयी कुछ ऐसा है इस नशे का असर एहसासों में फर्क ही नहीं कर पाता अब दौड़ता हुआ सा दिखता हूँ खुद को रुकता हु तो अक्स दौड़ने लगता है, ठहरता हूँ तो सांस रुक सी जाती है आँखों के बंद होने और खुलने में फर्क महसूस नहीं होता अब दिन भर एक गहरी नींद में सपनों से दूर रहकर जागता हूँ जब आँखें बंद और सपनों की दुकान खुल जाती है
Life is all about perspectives. Here’s mine…