जब भीड़ में रहकर भी अपना नहीं कोई दिखता
तो सिर्फ अपने दिल ही का साथ होता है
जो ज़िन्दा हो दिल तो शहर बसा रहता है
जो बुझ जाये तो दश्त सा बन जाता है
कभी खुद की मुश्किलों से खफा हो कर,
कभी किसी और के दर्द की कराह सुनकर
जाने कितनी बार कुछ बदलने का ख्याल मन में आया होगा
पर जब भी दिल ने वो याद दिलाया, कल का आसरा देकर हमने दिल को बहलाया होगा
जब कभी राह चुनने का मंज़र आया
दिल की न सुनकर हमने भीड़ पर भरोसा दिखाया होगा
और उसी राह पर चलकर अक्सर
खुद को कभी तनहा तो कभी अधूरा पाया होगा
पर दिल किसका है अपना ही तो है
कुछ जो कल कहा था उसने, आज वो जीकर दिखाओ उसे
फिर कोई राह मंजिल से पहले छूटेगी नहीं
और दिल तुम्हें तनहा कभी छोड़ेगा नहीं...
-- कानू --
Phir koi raah manzil se pehle chhutegi nahi aur dil tumko kabhi tanha chhodega nahi...
ReplyDeleteKanoo...this is just amazing!
I hate myself for not having known till now that you write so well. This is just wonderful.
Thanks....
Ninad
nice one kanoo.. Keep writing.. :)
ReplyDeletethanks for this nice post 111213
ReplyDeleteWrite more poetry {& in Hindi}, you have a natural ear for it...some of the hindi stuff {esp. this one} is pretty neat.
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