कि आखिर तू कौन है और करता क्या है
दिन भर आकाश के बदलते रंग
और रात में तारे बताते हैं
कि तू कलाकार है खुद शायद
यूँ तो कला को ही तेरा नाम देते सुना लोगों को
किस्मतें लिखी हैं जैसे तूने सब की
अगर ज़मीं पे होता तू तो किताबें लिखता ज़रूर तू
और हर किताब में कुछ पहेलियाँ लिखकर
उसके किरदारों के सुलझाने के लिए छोड़ देता
लोग तो कहते हैं तू सब के दिलों में बसता है
जब टूट जाते हैं दिल तब भी क्या तू वहीँ रुकता है
आवाज़ें वैसे तो बहुत आती हैं अन्दर से तेरी
ऐसे में शायद तू
बाहर से एक आवाज़ का इंतज़ार करता है
आवाज़ आते ही जैसे वक्त की ईंटों से तू
पहले से और मज़बूत एक घर अपने लिए फिर से बना लेता है
पर कहानी लिखी है अगर ये भी तूने ही
तो फिर कुछ पन्ने आधे अधूरे लिखे क्यों छोड़ देता है
मेहनत तो करी थी तूने भी खूब
ये सब जो दिखता है उसे देखने लायक बनाने में
मशीनें इतनी सारी बनाकर जो भी आज चलता हुआ दिखता है
उन सब के अन्दर फिट बिठाने में
कला भी देखी तेरी, मकान बनाने का हुनर भी
इंजिनियर की तरह मशीनें बनाई तूने
इन फिल्म वालों की तरह किरदारों को नचाता भी खूब है तू
बस बही खाते में शायद कमज़ोर रह गया तू
आज तेरी कहानी के किरदार जब अपने बस्तों में झांकते हैं
तो सभी, कुछ बहुत सारा तो कुछ बहुत ही कम वहाँ पाते हैं
कितने आराम से तू कह देता है की तुम्हारे खाते में बस ये ही बचा था
ये कैसे भूल गया तू की उस खाते को चलाना भी हमने तुझसे ही तो सीखा था
बस ऐसे ही कुछ सवाल उठे मन में
पर पूछूँ किससे, अक्सर दिल ये मुझसे पूछा करता है
इन्ही सवालों के बीच कल रात यूँ ही एक ख्याल आया मन में
कि आखिर तू कौन है और करता क्या है
-- कानू --
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