"सिर्फ यादों का सिलसिला है और बातें हैं कि जाने वालों को होता है चले जाना सिर्फ " |
एक घर था छोटा सा,
बस थोड़े से ही थे लोग।
बातें तो बहुत करते थे सब
एक दूसरे से कुछ कह
पाने का
शायद वक्त न था
सुनते भी थे
बातें बहुत सी
टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल
और खुद की
एल दूसरे की सुनने
को
शायद सब्र न था
चल रही थी गाडी
बिना रुकावट
थी पहियों में, पुर्ज़ों
में
जब तक जान बराबर
रुकने का तर्क न था
फिर आया एक ऐसा मोड़,
पड़ा एक पहिये पर ज़ोर
रुकना पड़ा उसी पल सब
को
बांधे थी शायद कोई
डोर
वो पल, बस एक पल ही
था
अब वक्त तो है, कुछ
बात करो
सब्र भी है सब सुनने
को
रुकने को अब तर्क नहीं
मैं ढूंढता
तस्वीर से आपकी, कई
सवाल हूँ मैं पूछता
तस्वीर ही है बस अब,
आप नहीं हो
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